भंग निशा की निरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककडी के खेतों से उठ, आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों को सुन पाता!
कोई पार नदी के गाता!
आज ना जाने क्यों होता मन,
सुन कर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता!