भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथी, सब कुछ सहना होगा / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 3 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} मानव पर जगती का शासन,<br> जगती पर संसृत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!


हम क्या हैं जगती के सर में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
कि प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!


आ‌ओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!