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कपड़ा लै गये चोर / रामचरन गुप्त
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ध्यान गजानन कौ करूं गौरी पुत्र महान
जगदम्बा मां सरस्वती देउ ज्ञान को दान।
जा आजादी की गंगा
नहाबे जनता मन हरषायी है।।
पहली डुबकी दई घाट
पै कपड़ा लै गये चोर
नंगे बदन है गयी ठाड़ी
वृथा मचावै शोर
चोर पै कब कन्ट्रोल लगाई।
या आजादी....
टोसा देखि-देखि हरषाये
रामराज के पंडा
टोसा कूं हू खाय
दक्षिणा मांगि रहे मुस्तंडा
पण्डा ते कछु पार न पायी है।
जा आजादी....
भूखी नंगी फिरै पार पै
लई महाजन घेर
एक रुपइया में दयौ
आटौ आधा सेर
टेर-लुटवे की पड़ी सुनायी है।
जा आजादी....
रामचरन कहि एसी वाले
अरे सुनो मक्कार
गोदामों में अन्न भरि लयो,
जनता की लाचार
हारते जाते लोग लुगाई है।
जा आजादी........