भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम दिवस / दुर्गालाल श्रेष्ठ

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 28 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= दुर्गालाल श्रेष्ठ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज व्याप्त छ व्योममण्डल
दीप्त प्रेमपरागले
दिन घमैलो पनि छ रक्तिम
स्वप्नयुक्त सुहागले
देख्छु चुनरी फरफराई
उडिरहेको कल्पना
शून्यमा पनि सुन्छु प्रेमी-
प्रेमिकाको जल्पना
खै, छहारीमा छहारी
न त छ कुञ्जै, कुञ्जमा
देख्छु सब परिणत भएझैँ
विजन प्रेमै-पुञ्जमा
चल्छ मन उद्दीप्त पार्दै
आज हावा पागल
नभ-नयन-गाजल समानै
कति सुशोभित बादल
प्रेमदिवस रहेछ यो क्षण
पत्थरै पनि पग्लिने
बगर-डगर जलाम्य पार्दै
प्रेमबाढी उर्लिने
प्रेमदिवस छ यति सुखद यो
एकदिन मात्रै किन
जीवनै सप्रेम बाचौँ
होस् न बरु एकैछिन ।