भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फुटकर श्लोक / गुमानी पन्त

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 30 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुमानी पन्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

[एक]
आटाका अणचा लिया खसखसा रोटा बडा बाकला
फानो फट्ट गुरूँस औ गहतको डुब्का विना लूणका ।।
कालो शग जिनो बिना भुटणको पिण्डालु का नौलका
ज्यौँ ज्यौँ पेट भरी अकाल काटनी गङ्गावली रौणियाँ ।।

[दुई]
दिन-दिन खजानाका भारिका बोकनाले
शिव-शिव चलिमैँका बाल नै एककैका ।।
तदपि मुलुक तेरो छोडि नै कोइ भाजा
इति वदति गुमानी धन्य गोर्खालि राजा ।।

[तीन]
अयि दशरथ सूनो एक बिन्ती म गर्छु
तब चरणसरोजं आज सिर् माथि धर्छू ।
भवजलनिधिमेनं हेरि ढेरै म डर्छू
सपदि कुरू तथा त्वं जौन् विगी पार तर्छू ।।