भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल बनाइदेऊ / नीर शाह
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:47, 31 मई 2017 का अवतरण
बादल बनाइदेऊ आकार बदल्न सकुँ
क्षमता दिलाइदेऊ जिउँदै म जल्न सकुँ
जाऊँ कसरी जाऊँ आफ्नै लाशको मलामी
चूपचाप सहूँ कसरी आफ्नै बदनामी
सस्तो बनाइदेऊ बजारमा चल्न सकुँ
क्षमता दिलाइदेऊ जिउँदै म जल्न सकुँ
फेरि चलाऊ गोली घाइते बनाई नराख
चितामै जल्न देऊ चिन्तामा जलाई नराख
लाजहीन बनाइदेऊ सडकमा ढल्न सकुँ
क्षमता दिलाइदेऊ जिउँदै म जल्न सकुँ
शब्द - नीर शाह
स्वर - दीपक खरेल
संगीत - सम्भुजीत बास्कोटा
एल्बम - पूर्णिमा