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भागौँ भने भागौँ कता / निमेष निखिल

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भागौँ भने भागौँ कता छैना जाने ठाउँ
बसौँ भने विरहले रोएको छ गाउँ
 
फुल्न छाडे फूलहरू पात झर्न छाडे
मूल्यहीन वस्तुजस्तै मान्छे मर्न थाले
सबैभन्दा माया सस्तो छैन कुनै भाउ
बसौँ भने विरहले रोएको छ गाउँ
 
आफ्नाले नै धोखा दिए कसलाई भन्न जाऊँ
हराएको आस्था मैले खोजी कहाँ पाऊँ
सायद दुख रै‘छ अर्को जिन्दगीको नाउँ
बसौँ भने विरहले रोएको छ गाउँ।