भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टुक्रिएर बाँचेको छ / निमेष निखिल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:12, 2 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निमेष निखिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टुक्रिएर बाँचेको छ टुक्राटुक्रा जिन्दगानी
आँखाभरि टिल्पिलाउँछ वेदनाको आँसु पानी
 
घाउहरु कति दुखे छैन कुनै लेखाजोखा
छातीभरि बोक्नै पर्ने दुख भन्ने जानीजानी
 
हाड घोटी बाँच्नु कति दुखदायी संसारमा
कति झेल्नु व्यथाहरु मित्रजस्तै मानीमानी
 
तिमी आयौ हुरीजस्तै लहर छायो जिन्दगीमा
उडाएर लग्यौ मेरा खुसीहरु छानीछानी।