भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिनसे हम छूट गये / राही मासूम रज़ा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:22, 5 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राही मासूम रज़ा }} जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं<b...)
जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकां कैसे हैं ।।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशां कैसे हैं ।।
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं ।।
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकां कैसे हैं ।।
जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं ।।