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डोर मोह की/ अर्चना कुमारी
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सुरक्षित है पास मेरे
आशंका, संदेह, प्रश्न
अविश्वास, आत्मग्लानि मेरे लिए
तुम्हारी दृष्टि की स्थिरता में निबद्ध है
संभावना, निराकरण, उत्तर
विश्वास, आत्मबोध तुम्हारे लिए
मधुरिम शान्त प्रार्थना की उज्जवलता
हृदय में उतरी भोर की शीतलता
लिए हुए प्रेम
ज्येष्ठ की ताप सहता है
कार्तिक की गुनगुनी छवि
म्लान होकर
ताप के अंतर्बोध से
दिवा के यज्ञ में निशा का होम करती है
जागरण का कालखण्ड
अनिश्चित होता है
निश्चित होती है श्राप की अवधि
प्रेम के सम्मोहन में
नायक मुक्त करता है नायिका को
आजीवन बँधी रह जाती है
डोर मोह की अदृश्य में...