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आंधी पीसै कुत्ता खावै / जनकराज पारीक

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आंधी पीसै कुत्ता खावै।
थारै घर सूं कांई जावै।
क्यूं आं साथै माथो मारै।
क्यूं बिरथा जी नै कळपावै।
तू दीयाळी रा गाए जा।
जे अै स्सै होळी रा गावै।
थारै तन पर अेक न तागो।
आं सगळां नै बागौ भावै।
सूळी ऊपर से ज सजालै।
नींद जिको कीं आधी आवै।
</poem.