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शायर न बनाया होता / सुमन पोखरेल
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हमारी इश्क को दिल्लगी का घर न बनाया होता
ए संगदिल तुम ने मुहब्बत को जहर न बनाया होता
चादर-ए-स्याह-ए-शब कर देती पिन्हा दुनिया को
अश्कों से धो धो के अगर हम ने सहर न बनाया होता
इस आवारगी में कहाँ जा के भट्कते हम यारों
लोगों ने इस गावँ को अगर शहर न बनाया होता
ना इन्साफी ही की है तुम ने भी हम पे ए खुदा मेरे
दिल-ए-नाजुक देना था हमे, तो उन्हे पथ्थर न बनाया होता
जिते ही रहते हम, रूठ कर उनका चले जाने से भी
काश ! हम ने उन्हे जान-ए-जिगर न बनाया होता
किधर जाता, किस से मिलता, पहुँचता कहाँ मैं सोचता हूँ
आपने अगर इस तरह मुझको हमसफर न बनाया होता
एक काम तो तुम ने भी अच्छा किया है, सुमन !
पागल कहलाता अगर खुद को शायर न बनाया होता