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गर्मी (हिन्दी) / सुमन पोखरेल

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गर्मी अपनी उत्कर्ष से भी और ऊपर जा रही है
मानो, कसम खा रखी है,
तमाम थर्मामीटरों को तोडे बिना नीचे न उतरने की ।

हवा इधर आने का मन नहीं कर रहा
बादल को ले के गया हुआ है कहीं
हनीमून मनाने ।
इसलिए बारिश भी नहीं हो रही ।

सूरज भरपूर ताक़त लगा के धूप बरसाता रहा है
लाद रहा है निर्ममतापूर्वक निरीह जीवनों के उपर
अपना एकतरफा शासन ।

इन्सान के शरीर और मष्तिस्क के बीच के सामन्जस्य को
तोड दिया है गर्मी ने ।
आर्द्र भूमि से हो गऐ हैं इन्सानों के शरीर
पागल बाढ ने जैसा समूचा भिगोया है बदन को पसिने ने ।
वो समझ नहीं पा रहा है त्वचा और रोवां का भेद
और इन्सानों के विचारों को सिर से बहाता हुआ
तलवा तक पहुँचा दिया है ।

खीचकर बदन पर ही सटा दिया है पसीने ने
बेमन से लगाए हुए कपड़ो को भी ।
आजीवन अभिनयरत इन्सान
गाली दे रहा है कपड़ों के अविष्कारको ।
खिडकियाँ हो के भी न होने के बराबर हैं,
किसी असफल राष्ट्र की सरकार की तरह।
पर्दे हिलेँ या न हिलेँ खुद असमन्जस में हैं ।
 
दीवारें कृत्रिम वैमनष्य का ताप फेंकते हुए
ऐसे फूँकार रही हैं जैसे आपस मे लडने जा रही हैं ।
कमरा खुद ही बावला हो गया है,
खुद के अन्दर का ताप सह नही पाने से ।
बिस्तर तवे की तरह आँच दे रहा है ।
उठते हुए इन्सान के शरीर पे सट कर
भागने की कोशिश कर रहा है
पसीने से तर तन्ना ।

सिलिंग पंखा आजीत है,
नाम मात्र का शक्तिविहीन अस्थाई अधिकारी सा
उल्टे सर लटक के निरन्तर गाली देते रहने पर भी
गर्मी का टस से मस न होने से ।
आगे टपक पडने हर कोई का गाली सुनते हुए
सर झुका के घुम रहा है टेबुल पंखा
सरकारी अफिस का कोई श्रेणीविहीन कारिन्देकी तरह ।

बिजली चली गयी है योजनाकारों के बैंकखातों पे छुपने
और बच्चा रो रहा है
गर्मी की वजह से माँ का दूध चुस न सकने से ।
बीबी के उपर नाहक उधेड रहा है शौहर
असफल योजना व गर्मी के पारा टूटकर निकला हुवा गरम गुस्से को ।
बीबी के लिए वो गुस्सा
खुद से भोगी जा रही गर्मी से ज्यादा गरम नही है ।

उन्मत्त उबल रहा है सडक का पीच
और ऐसे बढता जा रहा है हवा मे उष्णता
जैसे तोड डालेगा इन्सानों के धैर्य को ।

अस्तव्यस्त हो के बाते कर रहे हैं
पेड़ के निचे जमा होकर
खेत रोप न पाने से फुर्सत पाई हुए स्त्रियाँ ।
बगल में बंधा हुवा बैल जानने को उत्सुक है
औरतों को सिर्फ सर्दियों में ही शरम आती है क्या?
सम्भ्रान्त माने गए स्त्रियों के
खुद के आइने में सीमित रहे कुछ रहस्य भी
द्रुत गति में सार्वजनिक हो रहे हैं गर्मी के बहाने ।
पसीने के चिपचिपाहट पे उलझ गए हैं सभी के जोश और कौशल ।

प्रेमी-प्रेमिकाएँ
एक दुसरे को दूर से ही देख कर दिल को सम्हाल रहे हैं,
तमाम मोह और आसक्तियों से ज्यादा शक्तिशाली बन के खडा है
उन के बीच मे इस प्रचण्ड गर्मी का विकर्षण ।

सूरज अपना वर्चश्व दिखाने मे तल्लीन है अब भी
और बढता ही जा रहा है गर्मी का घमण्ड ।

इतना होते हुए भी
विश्वस्त हैं यहाँ जी रहे हर एक कण
कि
गर्मी को पछाडकर अवश्य आएगी शीतलता ।

अनुभव साक्षी है,
निर्मम शासन कर के कोई ज्यादा देर टिक नहीं सकता ।