भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परमेसर रा लेख / विनोद कुमार यादव

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 9 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद कुमार यादव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर में
बाजी नीं थाळी
मरद बांको हो
मोटो मान
राख ध्यान
डागधर हाथ
नीं दी आप री नाड़

दूजी परणीज्यो
हुई बा री बा
ठाकुर जी नीं करी स्या

घर रो मान
आज भी है,
उंची है स्यान
पै’ली
अेक निपूती ही
आज दो है
मरत तो मरद है
बस ओई दरद है
बेल फळै नीं
परमेसर रा लेख
अब टळै नीं।