भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सौं कीं : दो / गौरीशंकर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 11 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरीशंकर |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
म्हारै कन्नै
सौं कीं
होंवता थकां
कीं नीं हो
ओ ई हौ
सौं कीं