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आँसू की आँखों से मिल / सुमित्रानंदन पंत
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आँसू की आँखों से मिल
भर ही आते हैं लोचन,
हँसमुख ही से जीवन का
पर हो सकता अभिवादन !
अपने मधु में लिपटा पर
कर सकता मधुप न गुंजन,
करुणा से भारी अंतर
खो देता जीवन-कंपन
विश्वास चाहता है मन,
विश्वास पूर्ण जीवन पर;
सुख-दुख के पुलिन डुबा कर
लहराता जीवन-सागर !
दुख इस मानव-आत्मा का
रे नित का मधुमय-भोजन
दुख के तम को खा-खा कर
भरती प्रकाश से वह मन !
अस्थिर है जग का सुख-दुख
जीवन ही सत्य चिरंतन !
सुख-दुख से ऊपर; मन का
जीवन ही रे अवलंबन !
(फरवरी,1932)