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नूवीं बींदणी / उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'

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बाबोसा रै आंगणै पळी
लाड़ली सारै घर री।
नैणां में घणी खुसी
परी आंगण री।

घणां सारा सपणां नैणा में सजाय
कैई बातां हिवड़ा में बसाय
छोड़ आपरो आंगणो
नूवीं दुनियां बसावण जाय।

मारा पिवजी ऐड़ा होसी़... वेड़ा होसी
ना जाणै केड़ा होसी ... सोचियौ घणी बार
मारी आंखियां नै दिखगां मारा साब
म्हारै काळजै रा कुंवर साब।