अै सांसा झालणा पड़ैला ! / विनोद सारस्वत
बात बणै जद रूं-रूं में बगावत री बुम्बाडी उठै।
गांव-गांव गळी-गळी में,एक नूंवौ घमसाण मचै।।
कंवळै-कंवळै बागी बोल,गढ कोटां बोलै कागला।
हवा-पाणी में घूल ज्यावै, बगावत रा अे बुलबुला।।
प्रीत-रीत रा गीत अबै, कड्खै नाखणां पड़ैला।
माथै बंध्या मोड़ मरै,बै खोलणां पडै़ला।।
कामणियां सेजां सिसकै, डागळियां काग उडावै क्यूं।
नूंवी आजादी हेला मारै तू गैलौ विहौ तड़भड़ै क्यूं।।
गिरस्थ रा अळूझाड छोडै तो बात कोई नूंवी बणै।
राता नैंणां रा घोरका सूं, कोई नूंवी ख्यात बणै।।
छक्का ज्यूं मत रूळ, मिनख जमारौ गमावेलौ।
वीर भोम री राख मरजादा, सीधो सुरगां जावेलो।।
तिलाकै सगळी मोह-माया, वै जबरा जोध सजै।
खांधे खापण बांधे ज्यांरा नूंवा ही समसाण सजै।।
रोळ राज नैं झोलो देवण, अे सांसा झालणा पड़ैला।
सोरायप व्यापै स्रष्टी में तो, माथा भेंट देवणा पड़ैला।।