भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पान झरै तो झरो / रचना शेखावत

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:05, 14 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचना शेखावत |अनुवादक= |संग्रह= {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKRachna |रचनाकार=रचना शेखावत |अनुवादक= |संग्रह=

पान झरै तो कांर्इ्र
झर जाओ भलांई
कदास आ नीं होवै
उमर खोलै चौपड़ी
काढै
कोई लियो-दियो।

जूना हिसाब खुल्यां
लाग जावै
ब्याज-पड़ब्याज
फेर भलांईं
उमर रैवै ठंड दांई
पान झरै तो झरो भलांईं।