भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात / सतीश गोल्याण

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:31, 14 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश गोल्याण |अनुवादक= |संग्रह=था...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माणस चल्या जावै
पण बातां रह जावै
सुणनियां चावै ना सुणै
पण,
कैविणयां तो कै‘जावै
थोड़ो बोलै, अर
बोळो सुणै
बो‘ई गुणीजै
थोड़ो बोलण आळो ई
बोळो सुणीजै
स्याणा माणस काढै
बात रो नितार
बै आगै जदई बौले
दिखै बांनै कीं सार।