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दुनिया मुझको पागल समझे / आनंद कुमार द्विवेदी

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बैठे ठाढ़े जितने मुँह उतने अफ़साने हो जायेंगे
ऐसे महफ़िल में मत आओ, लोग दिवाने हो जायेंगे

दिल की बात जुबाँ पर कैसे लाऊं समझ नहीं आता
कभी अगर पूछोगी भी तो हम अंजाने हो जायेंगे

सांझ ढले छत पर मत आना मुझको ये डर लगता है
क्या होगा जब चाँद सितारे सब , परवाने हो जायेंगे

दुनिया मुझको पागल समझे पर मैं दिल की कहता हूँ
तुम जिन गाँवों से गुजरोगी, वो बरसाने हो जायेंगे

कुछ दिन तो तेरी गलियों में, मैं भी रहकर देखूंगा
कम से कम कुछ दिन तो मेरे ख़्वाब सुहाने हो जायेंगे

और कहाँ पाओगे मुझसा, सारे सितम आज़मा लो
मेरी हालत देख-देख कर लोग सयाने हो जायेंगे

ये ‘आनंद’ जहाँ भी तेरा जिक्र करेगा, राम कसम !
कुछ का रंग बदल जायेगा कुछ मस्ताने हो जायेंगे