भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींव तक / तारादत्त निर्विरोध

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 7 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डा तारादत्त निर्विरोध |संग्रह= }} जब मेरा खत उसे मिला ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब मेरा खत उसे मिला होगा,
फूल यादों का फिर खिला होगा ।

बेखुदी में भी जो नहीं बोला,
दर्द से उसको क्या गिला होगा ।

बाद मुद्दत के रूप बनते हैं,
टूट जाना तो सिलसिला होगा ।

याद करता उसे जमाना भी,
लौटकर जो नहीं मिला होगा ।

एक लम्हा भी जी नहीं सकता,
वो पहाडों का इक किला होगा ।

जो गया तोड कर सभी रिश्ते,
लोग कहते हैं बेवफा होगा ।

जिसने खुद को दफन किया खुद में,
वो किसी नींव तक हिला होगा ।