भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वीणापाणि के चरणों में / बनज कुमार ’बनज’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 18 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बनज कुमार ’बनज’ |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुर से मैं वन्दन करता हूँ।
शब्द तुझे अर्पण करता हूँ।
हे वीणापाणि मातेश्वरी,
तेरा अभिनन्दन करता हूँ।

तेरी छाया में चलता हूँ।
तेरे आँचल में पलता हूँ।
मैं बिरवा तेरे आँगन का,
फूलों के स्वर मैं झरता हूँ।

मैं गायन का अमृत पी लूँ।
मैं गीतों का अम्बर छू लूँ।
तेरे चरणों में सिर रखकर,
जड़ को चेतन मैं करता हूँ।

स्वर की कलियॅा तुझे चढ़ाता।
शब्द पुष्प से तुझे रिझाता।
मॅा, मुझको ज्योतिर्मय करदे,
नमन तुझे शत-शत करता हूँ।

जो कुछ जाना तुझसे जाना।
पर अब तक भी रहा अजाना।
मैं तेरे कुल का रैदासी,
वर दे, मॅा, याचन करता हूँ।