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मूल सवाल / अशोक शुभदर्शी

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उठाय केॅ रोज
नया-नया
तरह-तरह के
दकियानूसी
ओछोॅ
पाखंडी सवाल
दरकिनार करलोॅ जाबेॅ सकै छै यहाँ
जीवन केॅ मूल सवाल

करलोॅ जाय छै
गुमराह
अलग-थलग
लाचार-निरीह, उपेक्षित
जीवन केॅ मूल सवाल

कुंद करी केॅ चेतना केॅ
परोसै छै
उल्टा अर्थ संवेदना के
लिच्चड़-फरोस
लै जाय छै
गहरा अंधेरा में समाज केॅ
डाली केॅ हाशिया पर
जीवन केॅ मूल सवाल ।