भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमरोॅ स्त्रोत / अशोक शुभदर्शी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:41, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक शुभदर्शी |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानोॅ
हम्में छेकियै एगोॅ बरसाती नदी
हम्में नै निकलै छियै हिमालय सें
गंगा, यमुना, सरयू, ब्रह्मपुत्र नांकी
मतुर हम्में कोसी भी तेॅ नै छेकियै
जे अभिशाप बनलोॅ रहै छै
घरे-घर, गाँमें-गाँव लेली

हम्में मिटाय नै छियै
ऊ रंग सें कुछ्छू
हम्में बहुते प्यार करै छियै
अपनोॅ पास-पड़ोस केॅ गाँव सें
ई ठीक छै कि
हम्मेॅ नै बहै लेॅ पारै छियै
सभ्भे दिन
तहियोॅ हम्में बचाय केॅ राखै छियै
आपनोॅ स्त्रोत, पानी
हुनका सभ्भै वास्तें
हुनी सनी तेॅ बालू हटाय दै छै
आरोॅ पानी निकाली लै छै
बैसाखोॅ-जेठोॅ में भी ।
आरोॅ आबेॅ तेॅ हमरोॅ जिनगी
बालू ही निकालै में लागलोॅ छै आदमी