भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपनोॅ होय लेली / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:43, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक शुभदर्शी |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दुनिया तोरोॅ तबेॅ
बहुते बड़ोॅ होय जाय छै
जबेॅ तोरा नै होना होय छै
आपनोॅ बाप-दादा जैसनौं
छोड़ी केॅ जे गेलोॅ छै आपनोॅ गोड़ोॅ के चेन्होॅ
तोरा बाप-दादां
ई सच में बहुते कठिन छै
चली के ओकरा पर देखैबोॅ
ओकरा सें अलग चलबोॅ
यै पर चलबोॅ ही बेहतर छै
ई कभियोॅ बढ़िया नै हुअे पारॅे
कि जों नै चलोॅ पारोॅ
अलग चेन्होॅ पर
तेॅ डूबी जा तोंय बाप-दादा के बनैलोॅ
वहेॅ अंधेरा भरलोॅ कुआँ में
गढ़ोॅ एक अलग नया दुनिया
आपनोॅ बाप-दादा सें अलग
जहाँ आकाश जैसनोॅ ऊँच्चाई हुअेॅ
सरंगे जैसनोॅ खुल्लापन
ई जरूरे थोड़ोॅ कठिन छै
तहियोॅ तोंय तलाश करोॅ
एक नया रास्ता के
आपनोॅ होय के लेली
यहेॅ जरूरी छै तोरा वास्तें आपनोॅ हुवै लेली।