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अरथी उठलोॅ छै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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फूलोॅ सें लदी केॅ
नया जोत, नया संदेश भरि केॅ
राग-विराग सें नाता तोड़ी केॅ
आय शहीदोॅ के अरथी उठलोॅ छै।
दै रहलोॅ छै विदा सरंगे कानी केॅ
देशोॅ लेॅ जे लड़लै सीना तानी केॅ
बर्फ में लड़तें रहलै जे आखिरी सांस तक
ओकरा वासतें आय फूल के भारोॅ भी
सहबोॅ कठिन होय रहलोॅ छै।

आय पन्द्रह अगस्त छेकै
लाख-लाख लोग छै चुपचाप खाड़ोॅ
शहनाई के मिट्ठोॅ- मिट्ठोॅ धुनोॅ में
श्रद्धांजलि दै लेली कतारोॅ में लागलोॅ
के कŸोॅ पानी में
के कŸोॅ छोटोॅ बड़ोॅ
गजबे समां बँधलोॅ छै
शहीदोॅ के अरथी उठलोॅ छै।

जिलेबी खैतेॅ
शहीदोॅ के कुरबानी भूली जैतेॅ
देशोॅ पर कहर बरपैतेॅ
धोॅन, पैसा जन केॅ लूटी केॅ बटोरतै
जन-मन-गण गीत गैतेॅ
नगाड़ा के आवाजोॅ साथें ढे़र सिनी
याद ताजा होय उठलोॅ छै
शहीदोॅ के आय अरथी उठलोॅ छै।

जे रं राम केॅ मरजादा केॅ
शिव, कृश्ण के आदर्शोॅ केॅ
गाँधी, बुद्ध के परम-पावन संदेशोॅ केॅ
यै देश के लोगें
ठाकुरबाड़ी में बंद करी केॅ
आँख, कान दूनोॅ बंद करी लेनें छै
वहेॅ रं शहीदोॅ लेली
सालोॅ में दू दिन तय करी केॅ
यादोॅ के तमाशा करै छै
देशोॅ केॅ भूली केॅ मनमानी करै छै
यही लेॅ आय विमल कवि कंठ
विवश लाचार होय केॅ
देश जन केॅ जगावै लेॅ
गीत गावेॅ लागलोॅ छै
शहीदोॅ के आय अरथी उठलोॅ छै।