भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छीनी मुरली लेभौं / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:38, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अइयो तोंय आँखी में बसिहोॅ
छीना मुरली लेभौं,
बाजै जे छौं पाँव पैजनियां
तोड़ी राखी देभौं।
बहुत सतैल्हें मोहन तोंय हमरा
पाबी केॅ असकल्ली,
रसता टेकी खाड़ोॅ होल्हेॅ
वृन्दावन रोॅ गल्ली।
आय छोड़ी कल फेरू जौं एैल्हेॅ
पकड़ी कान घुमैभौं।
तोरा सें रूसली छी हम्में
मधुवन में बैठली छी हम्में,
आँख लोर सें भरलोॅ छै
प्रीत मान चाहै छी हम्में,
मतुर आय तोंय कŸाोॅ मनावोॅ
हम्में नै एकदम मानभौं।
घट फोड़ी पनघट पर देल्हेॅ
अंचरा पकड़ी खींची लेल्हेॅ,
मुँह दूसी केॅ नाची-नाची
हमरोॅ खूब्बे हँसी उड़ैल्हेॅ,
सच्चेॅ आबेॅ फेरू नै कहियोॅ
हम्में तोरा सें बोलभौं।
दुख समझी केॅ किसन कन्हैया
छोड़ी केॅ नाचबोॅ ता-ता-थैया,
कानोॅ केॅ पकड़ी उठ-बैठ करि कहलकै
मानोॅ नै तेॅ हमरे किरिया,
हाँसी बोलै वृन्दावन छोरी
बदला में चुम्मा लेभौं।