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किंछा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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हमरा जिनगी में आबी केॅ कहिया
अमृत के धारा बरसैभेॅ,
काँटोॅ- कूसोॅ में एक साथ चली केॅ
संगे-संग मीत, तोंय मुस्कैभेॅ।

हमरा सूनोॅ जिनगी रोॅ तोहें
नै मिटै वाला पहचान छो ,ॅ
हमरोॅ पूजा के फूलोॅ रोॅ तोहें
मद भरलोॅ मधुर मुस्कान छोॅ।
हँसी ठोर पर लानी कहिया,
हमरोॅ जीवन सरस बनैभेॅ।

हमरा याद करोॅ नै चाहोॅ
हम्में तोरा नै भूलभौं,
टूटला साजोॅ में गीतोॅ जे बजतै
तोरा सें फरियादे करभौं।
गीतोॅ के आखर-आखर में,
लय बनी तोंय बजभेॅ।

आँख लोरोॅ सें भींजलोॅ छै
चाहत के बाढ़ उमड़लोॅ छै,
जौं सुख-दुख के साथी नै बनभेॅ
जिनगी जहान उजड़लोॅ छै।
शब्द-साज ई बजतैं रहतै
जब तक तोंय नै एैभेॅ।