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आँसू लेली / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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तोंय हमरा बहुत याद आबै छोॅ
दुख के भारोॅ सें जबेॅ- जबेॅ
अकुलैलोॅ छियै हम्में
छिपाय लेॅ चाहनै छियै
दुखोॅ सें कातर दर्द केॅ जबेॅ हम्में
तबेॅ तोंय
अमरलŸाा नांकी लिपटी केॅ हमरा सें
ओस रोॅ बूंद बनी केॅ
आँखोॅ के पिपनी के रसता सें निकली जाय छोॅ।

काँटोॅ- कूसोॅ सें
पल-पल घिरलोॅ ई जिनगी में
लहूलूहान भी होलोॅ छियै हम्में
सुखोॅ के चरमबिन्दु पर भी
पहुँचलोॅ छियै हम्में
मतर दूनोॅ बखती तोरा
रोकै में असमर्थ होलोॅ छियै
ऐ हमरोॅ आँखी के लोर
तोरा हम्में अपना शब्दोॅ के जालोॅ में फँसाय केॅ
बहुते दाफी रोकै के चेश्टा भी करनें छियै
मकड़ी के जालोॅ में फँसलोॅ मक्खी नांकी
तोरा बान्ही केॅ राखै के
क्रूरता भी दिखैनें छियै
मतुर एक तोंय छोॅ
कोय अनजान कोना में बैठली दुलहिन नांकी
टपकी जाय छोॅ आँखी के कोरोॅ सें
बिना कोय आवाज दस्तक के
....टप...टप...टप
बहि केॅ आँखोॅ सें दुखो रोॅ बोझ
हलका करे छोॅ

के दाफी तोरा छाया सें दूर भागी केॅ
सपना के दुनिया रोॅ खाक भी छानलियै
मतुर वै ठियां भी
बिन बोलैलोॅ मेहमानोॅ जुगां
सकुचैलोॅ- शरमैलोॅ आबी जाय छोॅ
जीवन रोॅ अंतिम अवस्था में
जबेॅ दिल तनी-तनी बातोॅ पर
टुनकाहा होय केॅ टन-टन टूटै छै
तखनी तोंय
आँखिये कोरोॅ पर धरलोॅ रहै छोॅ
हमरा जिहोॅ केॅ हल्का करी केॅ
तोहें जे हमरा पर उपकार करै छोॅ
यही लेॅ,
तोंय हमरा बहुते याद आवै छोॅ।

जबेॅ जरै छै जम्मोॅ के दीया
आरो मरनखाटोॅ पर पड़लोॅ रहै छियै हम्में
तेॅ तोंय
मोह विवश लाचार होय केॅ बहै छोॅ
दुख-दग्ध मनोॅ के मैल धुवै छोॅ
सुख-दुख के पहचान करावै छोॅ
सच्चेॅ
तोंय हमरा बहुते याद आवै छोॅ।