भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तय जे छेलै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तय जे छेलै, वहेॅ होय रहलोॅ छेलै,
गजबे अदालत तहियोॅ भरलोॅ छेलै ।
पता नै, कहिया सें खाड़ोॅ छेलै सभ्भेॅ
सच्चेॅ घुन नियत में ही लागलोॅ छेलै।
देशोॅ लेली बफादारी बनलोॅ छेलै तमाशा
सुनी केॅ भी अनसुने रहि गेलोॅ छेलै।
संझावाती के बेरा झलफल छेलै सांझ
हवा साथें तोरोॅ याद आवी गेलोॅ छेलै।
बफा हद सें बढ़ेॅ तेॅ होय जाय छै कातिल
दिवार बनी आँखोॅ में लोर आवी गेलोॅ छेलै।
झूठे के इल्जाम लगैनें छेलोॅ हमरा पर
दरअसल हवा ने ही तोरोॅ जुल्फ हटैनें छेलै।
जें नै सुनै ओकरा सुनैला सें की फायदा
सच कहियौं, दिल कसमसाय केॅ रहि गेलोॅ छेलै।