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तय जे छेलै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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तय जे छेलै, वहेॅ होय रहलोॅ छेलै,
गजबे अदालत तहियोॅ भरलोॅ छेलै ।

पता नै, कहिया सें खाड़ोॅ छेलै सभ्भेॅ
सच्चेॅ घुन नियत में ही लागलोॅ छेलै।

देशोॅ लेली बफादारी बनलोॅ छेलै तमाशा
सुनी केॅ भी अनसुने रहि गेलोॅ छेलै।

संझावाती के बेरा झलफल छेलै सांझ
हवा साथें तोरोॅ याद आवी गेलोॅ छेलै।

बफा हद सें बढ़ेॅ तेॅ होय जाय छै कातिल
दिवार बनी आँखोॅ में लोर आवी गेलोॅ छेलै।

झूठे के इल्जाम लगैनें छेलोॅ हमरा पर
दरअसल हवा ने ही तोरोॅ जुल्फ हटैनें छेलै।

जें नै सुनै ओकरा सुनैला सें की फायदा
सच कहियौं, दिल कसमसाय केॅ रहि गेलोॅ छेलै।