भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मास्टर / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:38, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मास्टर केॅ मस्टरबा कहभो,
तेॅ बच्चा पढ़तोॅ कहियो नै ।
ऐतोॅ -जैतोॅ स्कूल लेकिन,
आगू बढतोॅ कहियो नै ।।
उत्स ज्ञान के गुरुवे छथनी गुरुवे सेॅ इंजोर छै ।
देखै नै छो तीस बरस सेॅ , केहन घटा-घनघोर छै ।
रहलोॅ इहे हाल अगर तेॅ
देश सुधरतोॅ कहियो नै ।
वेतन जब सेॅ मिलै लगलै, गुरु चढ़ल छोॅ ऐंख पर ।
जब विकास केॅ सीढ़ी मिललै चोट करै छोॅ पैंख पर ।
नौकर जब तक बुझतें रहभोॅ
ज्ञान मँजरतोॅ कहियो नै ।
गुरु तेॅ ब्रह्मा,विष्णु,शिव केॅ धरती पर अवतार छथिन ।
गुरु तेॅ भवसागर तरवैया माँझी के पतवार छथिन ।
मिलतै नै सम्मान गुरु केॅ
तेॅ स्वर्ग उतरतोॅ कहियो नै ।