भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निरमल दूहा (1) / निर्मल कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:23, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज्यूँ सूखे रूँख में शूल ह्वे
हरिये रूँख में पात
त्यूँ दुरजन में कुटिलता
सुरजन में निरमल संस्कार !!१!!

ज्यूँ पक- पक माटी घट बणे
ज्यूँ तप- तप स्वर्ण सुजान
निरमल त्यूँ सतजण बणे
सुकरम - त्याग सूँ महान !!२!!

ज्यूँ जल में बिजली छुपी
ज्यूँ वायु में श्वास
अंतर में आतम बल छिप्यो
निरमल ज्ञानी सकै पिचाण !!३!!

सूरज रे लागे ग्रहण
चन्दो पूनम रो गुम जाय
समय फिरयाँ विधि लेख सूँ
निरमल सतजण भी दुःख पाय !!४!!

देख लकीरां हाथ री
सुखी-दुखी मत होय
सत-करम कर, संतोष धर
निरमल बण, मन कालिख धोय !!५!!

निरमल तन रो क्या करे
जो मन निरमल नीं होय
ज्यूँ सुन्दर शीशी कांच री
पण भीतर मदिरा होय !!६!!

ऊँचो भाखर क्या कराँ
जो जल देवत ना छाँव
भार धरा पे हो रह्या
निरमल काईं याँ को काम !!७!!

अति बुरी हर चीज री
अति करो मती कोय
निरमल अति वो ही करे
जो मति आपणी खोय !!८!!

सत संगत कोरी क्या करे
जो संस्कार नीं होय
निरमल जल में मिलाय दो
मदिरा दुरगन्ध न खोय !!९!!

मिनख, मिनख ने बाँटियो
धरम-पंथ रे नाम
मानव धरम जो जाणियो
नहीं किणी पंथ स्यूं काम !!१०!!