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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-10 / दिनेश बाबा

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73
जात-पात टुटलै मतर, छै अबिहों कुछ ऐंठ
टूटै बंधन धरम के, हुवै समाजी पैठ

74
दुख सें हमरो छै लिखल, किसमत के अनुबंध
मिललो छेॅ हमरा तहीं, सब टुटलोॅ संबंध

75
बरद जकां मर्दा खटी, करै उपार्जन कैश
बुद्धि चतुर नारी करै, बनी मालकिन ऐश

76
आरक्षन पर छै अभी, ‘बाबा’ काफी जोर
मिलना हुनका चाहियो, जे भी छै कमजोर

77
आरक्षन के नाम पर, करै सियासत लोग
भटकै छै फिट-फाट सब, अनफिट केॅ संयोग

78
आरक्षन मुद्दा छिकै, कुछ खातिर भरपूर
स्वर्ग नरक लागू करै, नै दिन छै हौ दूर

79
कहिने नी भारत करै आरक्षन के मांग
ओलंपिक मेडल लेलि, अड़बै अपनो टांग

80
करै आलसी ही, सदा मिहनत सें परहेज
हुनका लेॅ जिनगी छिकै, कांटा केरोॅ सेज