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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-12 / दिनेश बाबा

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89
राजनीति में आदमी, होथैं छै बदनाम
जनता के भरमाय लेॅ, करै धर्म के काम

90
अत्याचारी साल भर, एक रोज उपकार
‘बाबा’ भ्रष्टाचार के, कना हुवै उपचार

91
धनियां, गोटा, बाजरा, भुट्टा के भरमार
झौव्वा, कास, बबूर छै, दीरा के श्रृंगार

92
हौ पारोॅ के लोग रो, बड्डी मिट्ठो बोल
‘बाबा’ सद्व्यवहार के, कीमत छै अनमोल

93
पाप करो जिनगी भरी, एक दफा लेॅ नाम
नारायन कहि जाय छै, पापी भी सुरधाम

94
एक बार पूजा करै, मिलै थोक में पूण्य
पाप कर्म एक्को दफा, करै यशोॅ केॅ शून्य

95
दुरयोधन के द्यूत में, दु्रपदसुता के चीर
कोन धरम लेॅ चुप रहै, पाँचो पांडव वीर

96
कोनी बातों सें खफा, छै शहर कोतवाल
गब्बर रं रखलक करी, गाँव शहर के हाल