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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-16 / दिनेश बाबा

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113
बच्चा, बूढ़ा, नवयुवक, आ नारी स्मार्ट
खूब निभाबै छै सभे, अपनों अपनों पार्ट

114
एक गुना बिल्डिंग बढ़ै, चारगुना इंसान
महानगर विस्तार में, दोनो एक समान

115
अनुशासित छै लोग सब, नैं कचकच नैं मार
रिक्शा लेली भी यहाँ, अक्सर लगै कतार

116
कहीं खड़ा तों होय जा, क्यू के लगै कतार
जहाँ समय के माँग छै, जिनगी में रफतार

117
जनसंख्या देखो यहाँ, भेलै जना पहाड़
रुकतै आबे कहाँ पर, इंसानो के बाढ़

118
जनसंख्या विस्फोट में, बढ़लो गेलै भीड़
घोॅर बढ़ै रोजे मतर, कहाँ पुरै छै नीड़

119
महानगर में घोॅर नैं, मिलथौं केवल फ्लैट
बोली छै खिचड़ी यहाँ, बेसी दिस या दैट

120
पानी जुगना धन बहै, जिनगी छै उन्मुक्त
यहाँ तेॅ स्वेच्छाचारिता, ही लागै उपयुक्त