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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-24 / दिनेश बाबा

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185
‘बाबा’ बाँटी लेॅ बलुक, सौंसे ठो असमान
बाँटो नैं कहियो मतर, पंछी करो उड़ान

186
जन मानस में छै बसल, जैं दै अति आनन्द
गागर में सागर जकां, छै ई दोहा छंद

187
बलत्कार में लिप्त जहाँ, होतै थानेदार
कैहिने नी होतै वहाँ, ‘बाबा’ भ्रष्टाचार

188
नेता बनै में होय छै, लड्डू दोनो हाथ
बिन पैसा घूमी लियेॅ, मौज मजा के साथ

189
मर्द बिचारा की करै, मौगी छै हरजाय
पार्टी केरो नाम सें, मंत्राी साथें जाय

190
घूमै के जकरा रहेॅ, देश विदेश रो शौख
मंत्राी के पत्नी बनी, दौरा खूब करौक

191
‘बाबा’ मत रखियै कभी, बीबी डीकंट्रोल
नै तेॅ होथौं एक दिन, वही गला के ढोल

192
जे मिजाज सें कटु हुवेॅ, झगड़ाही, मगरूर
घोॅर बसाबै वें भले, कलह नैं होथौं दूर