भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-36 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=दोहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

281
धर्मदूतो सें भेलै, अब जे अफलातून
हुनखौ सें भेलो रहै, कभी एकठो खून

282
टांगो खीचै में छिकै, जज के साथ वकील
न्याय नहीं अन्याय के, जें ठोकै छै कील

283
न्याय बलुक महँगो छिकै, सस्तो मतर कि जान
चाहे कतनो आसथा, के घायल छै प्रान

284
जिनगी भर बनलो रहै, ईश्वर में विश्वास
चाहे नै होबै बलुक, पूरा कोनो आस

285
बेबस होलै जिन्दगी, रोटी खातिर न्याय
रहलो छै अरमान सब, मरूवैलो, निरूपाय

286
जेकर जिनगी में अधिक, ‘बाबा’ हुवै अभाव
बात-बात मंे वें सदा, देवे करथौं घाव

287
चोटो के भी होय छै, अलगे अलगे ढंग
घाव भीतरी करै छै, सौंसे जिनगी तंग

288
तंग करै ऊ घाव भी, ‘बाबा’ उपरी चोट
मतर कि सौंसे जिन्दगी, सालै बहुत कचोट