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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-41 / दिनेश बाबा

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321
काम कराबै प्रेम सें, कहथौं थैंक्यू भाय
बेवकूफ के यही ना, लै छै सब फुसलाय

322
जिनगी छै टिकलो जना, बैसाखी पर पाँव
तभियो सब चिन्ता करै, काहीं मारौं दाँव

323
ताव कहीं भी लागथौं, पास रहो या दूर
‘बाबा’ सचमुच सुंदरी, छिकै एक तंदूर

324
दानवीरता में जहाँ, होलै वीर अनेक
दानी श्रेष्ठ राजा शिवि, रहै वही में एक

325
दैत्यराज, राजाबली, दानी रहै महान
जानी केॅ भी स्वयं केॅ, करले छेलै दान

326
एक सुदानी मोरध्वज, दान करलखिन पूत
मर्यादा ही दान के, करने छै मजगूत

327
अंगराज सच में रहै, महा सुदानी कर्ण
मरै घड़ी तक दाँत के, दान करलखिन स्वर्ण

328
परपंरा छै संत के ‘बाबा’ जग विख्यात
विष पीवी केॅ मर्यादा, राखलकै सुकरात