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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-50 / दिनेश बाबा

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393
मलकारो कन नौकरी, मछुआरो के जाल
डर सें दिल धुक-धुक करै, देतो कबेॅ निकाल

394
‘बाबा’ पंछी रङ बनो, विचरन करो अकास
सरकस केरो जिन्दगी, जरो न आबै रास

395
सरकस केरोॅ जानवर, जना सुखलका साग
‘बाबा’ बदकिसमत छिकै, बंदी बनलो बाघ

396
मंसूबा इंसान के, नचबाबै छै नाग
जे नैं यें करवाय लेॅ, पेटोॅ केरोॅ आग

397
हाथी भी साथी बनै, भालू करथौं नाच
खेल दिखाबै बंदरो, तोता पोथी बाँच

398
शेर, बाघ मानी लियेॅ, मानै छै खरगोस
कौव्वा, गीदर, भेड़िया, कभी न मानै पोस

399
बात-बात में व्यक्त करै, जौनें अपनो खीज
पढ़लो-लिखलो भी कई, होय छै बदतमीज

400
जी जानो सें दौडियै, जिनगी केरो रेस
जीतै वालां पाय छै, हारै वला के क्लेस