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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-61 / दिनेश बाबा
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खेत लगै सुन्दर तभी, लागै जबेॅ जिरात
बिन सिंदूरी मांग के, सोभै नै अहिवात
482
झुमतें देखी केॅ फसिल, कृषक करै छै नाज
पुलकित होय छै मोॅन कि, होतै खूब अनाज
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पानी के खातिर यहाँ, मचलो हाहाकार
मौनसून के छै अभी, सब केॅ इन्तेजार
484
किसिम किसिम के टोटका, जोग-जाप आ ध्यान
वर्षा लेॅ होतै विवश, इन्द्रदेव भगवान
485
यज्ञ हवन हिन्दू करै, मुसलिम पढ़ै नमाज
नांग्टो भेलै जब कुड़ी, मेघ बरसलै आज
486
सावन भादो बीतलै, गेलै हय बरसात
बलमा बिन घरनी कना, काटै छै दिन रात
487
जिनगीभर जरलै जिया, जब तक करो सनेह
आखिर में जरतै यहू, सुखलो पिंजर देह
488
जें दुसरा के काम में, हरदम खोजै खोंट
‘बाबा’ हुनका भी कभी, लगबे करतै चोट