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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-82 / दिनेश बाबा

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649
याहीं पैलो जाय छै, भाषा के उत्कर्ष
आपस के सद्भाव सें, निकलै छै निष्कर्ष

650
भीतर सें बैरी छिकै, दिखलाबै सद्भाव
दूर तलुक ‘बाबा’ करै, वही आदमी घाव

651
कत्तो करो भलाय तों, खल मारै छै तीर
मरखंडो बरदा जकां, बान्ही दहु जंजीर

652
मरखंडो के होय छै, बेसी आदर मान
सिद्धो पर तेॅ यहू ना, कोय न दै छै ध्यान

653
रोज बढ़ै छी एक पग, हम पच्छिम के ओर
घटलो छै राष्ट्रीयता, बढ़लो गेलै शोर

654
देश प्रेम के नाम पर, छै केवल पाखंड
आतंकी छुट्टा घुरै, कोय न पाबै दंड

655
दुर्घटना सें देखियै, भरलो छांै अखबार
साधारन लेॅ न्यूज छै, बढ़का लेॅ परचार

656
देश प्रेम होलै जना, एक शुद्ध व्यापार
शोषित होलै भावना, बढ़लै भ्रष्टाचार