भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोशी केॅ धार मेॅ / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:41, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा ‘किंकर’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोशी केॅ धार मेॅ कोशी के धार मेॅ,
कैलियै ट्रांसफर हमरा अहँा मँझधार मेॅ।
चारु दिशि पानी-पानी, चानी सन लागै छै,
सावनोॅ केॅ उमडल नदिया, पूब दिशि भागै छै,
नाव केॅ प्राण बसै, देखू पतवार मेॅ।
घाट सोनमनकी सें ताकियौ बलौर तें,
गुरुजी के नौकरी लागै हमरा खेलौर के,
केना के चलतै स्कूल नदिया के पार मेॅ।
छप्पर न छै स्कूल मेॅ , आरू नै केवाड़ छै,
गामक बच्चा सबके, जिनगी अन्हार छै,
बीतल पचास मुदा छैहे इन्तजार मेॅ।
लागते न छै कि इहो भारत के अंग सन,
देश-विदेश लागै हमरा मोरंग सन,
जानथिन महादेव की छै ठोकल कपार मेॅ।
कविता के संगे संग कवि चललै गाम मेॅ,
शिक्षा के दीप जलते गामो-गिराम मेॅ,
किंकर विकास करतै अप्पन बिहार मेॅ।