भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम्मर बेटा छै बकलेल / कैलाश झा ‘किंकर’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 25 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्मर बेटा छै बकलेल ।
पेट मेॅ खर नै सिंग मेॅ तेल ।।

माय कहलकै हेरे लाल,
आने जल्दी आटा, दाल,
दाल केॅ पैसा ऊ बचाय केॅ
किनने छै गमकौआ तेल ।

दूध उठौना देलक छोड़ाय,
ऊ पैसा धोबी घर जाय,
आयरन करी केॅ पैंट-शर्ट मेॅ
खेलै छै ऊ क्रिकेट खेल ।

कथी ले घर मेॅ सब्जी आनतै,
ऊ पैसा केॅ गुटका फाँकतै,
पान-चिबैने ठोर रँगैने
साथी सब मेॅ करै कुलेल ।

बल्हों हम कनियाँ करी देलियै,
जोड़ते-जोड़ते आबे बुढ़ैलियै,
पत्नी के फरमाइस छोड़ि केॅ
छुच्छे फुटानी सांझ-सबेर ।