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बाढ़ (कवित्त) / कैलाश झा ‘किंकर’

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गेलियै बलौर पानी-पानी केॅ हिलोर,
गिरै घर मचै शोर, भागै वृद्ध आ किशोर छै।
चूड़ा नोॅन फाँकि-फाँकि बिना घरवार नाँखी,
आकाशोॅ के झाँकि-झाँकि बीतै साँझ भोर छै।
बूढ़ी मैया फटकारै, हमरे ऊ पर चारै,
मोॅन के भरास झाड़ै, रिलिफ केॅ चोर छै,
भनई कैलाश दीखै छै कहैं न हास,
हर चेहरा उदास हर आँखि-आँखि लोर छै।।

2
देखी-देखी बाढ़ केॅ विभीषिका बुझावै जेना,
घूँघट मेॅ आँखि केॅ भिंगावै छै दुल्हनियाँ।
डेहरी पर ठाड़ी जे बुतरूआ केॅ गोदी लेने,
नैहरा के रस्ता हियाबै छै दुल्हनियाँ।
हहराबै चारू दिशि पानी-पानी-पानी सन,
डरि-डरि फोन सेॅ बताबै छै दुल्हनियाँ।
भनई कैलाश देखी जान-माल, क्षति-गति,
पीर गंभीर समझावै छै दुल्हनियाँ।।

3
खेती-वारी नाश भेलै, मकई गेलै धान गेलै,
माथ पर हाथ धरि सोचै छै किसनमा।
गहना केॅ बेची-बेची खेत मेॅ लगाबै वाला,
बाबला बनल बाल नोचै छै किसनमा।
धीया-पूता जीतै केना खुशियाली ऐतै केना,
बाढ़ केॅ विभीषिका से पूछै छै किसनमा।
मनई कैलाश देखोॅ -देखोॅ सौंसे हिन्दवासी,
पत्नी के लोर केना पोंछै छै किसनमा।।

4
क्मला,बलान, कोशी साले-साल बाढ़ लानै,
छोडै छै नेपाल हर साल पानी हिन्द मेॅ ।
साले-साल बाँध टूटै साले-साल रोड टूटै,
साल-साल पोल गिरै के कहानी हिन्द मेॅ ।
डूबी-डूबी लोग मरै पानी मेॅ ही लाश सड़ै,
संधि केरो बात लागै छै बेमानी हिन्द मेॅ ।
बाढ़ केरोॅ बाद सब्भे भूली-भाली बात फेनु,
सुतै घोड़ा बेची-बेची केॅ जवानी हिन्द मेॅ ।।

5
नेताजी साहेब संग रौंद मारै कोशी गंग,
घडियाली आँसू केरोॅ धार भी बहावै छै।
जबेॅ बँटते रिलिफ दूर होते तकलीफ,
एगो पटना मेॅ फेनु सें भवन दरकार छै।
राजा भी मल्हार गावै, रानी भी लिलार साजै,
जनता मेॅ सगरो मचल हाहाकार छै।
भनई कैलाश सुनोॅ देश के पहरुआ हो,
बाढ़ के चपेट मेॅ ई उत्तरी बिहार छै।।