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बाबा ! चिट्ठी लिखै छी / कैलाश झा ‘किंकर’

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बाबा ! चिट्ठी लिखै छी, बाढ़-पीड़ित बनी कानी केॅ।
कइहो ना माय भवानी केॅ।

जखने घुसलै घर मेॅ पानी,
दर्दे गम के शुरू कहानी,
चिथड़ा-चिथड़ा कैलकै, धरती चूनर धानी केॅ।

भागलौं धीया-पूता के संग,
छत पर वर्षा कैलकै तंग,
हवा उडैने गेंलै सौंसे तानल पन्नी केॅ।

पड़रू हकरै चारा बिना,
सावन भादो के महीना,
होतै कोन व्यवस्था, आबेॅ सानी-पानी केॅ।

घर ते बसलो रहै उजड़लै,
पानी माथा सें गुजरलै,
बोलिहो बाँध नेपाली तोड़े लेॅ आड़वाणी केॅ।

केकरो राहत मिललै खूबे,
कोच-कोच नाव बिना भी डूबै,
कोच-कोच चन्दा खैलकै बड़का बेनर तानी केॅ।