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बिहारी मजदूरोॅ के पलायन / कैलाश झा ‘किंकर’

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1
छोड़ी केॅ बिहार पिया चल लय पंजाब कियेॅ,
कोल्हू के बरद जेकां जोती-जोती मारथौं।
घड़ी-घड़ी गुड़ केरोॅ चाय खेत भेजी-भेजी,
भैया-भैया कहि मजदूरोॅ छय पुकारथौं।
जानवर बूझी काम दारू से निकालै वहाँ,
धरोॅ ऐभय जखनी बीमारिये पछाड़थौं।
कारू काका ऐलोॅ छै पंजाब से बीमारी लेने,
दवा दारू बसलोॅ ई घरोॅ के उजाड़थौं।।

2
खेती-बारी देखोॅ यहाँ छोड़ोॅ नै बिहार पिया,
चलोॅ कोनो खेत केॅ बटाई पे उठाबै लेॅ।
जोती-कोरी खेत के लगाबोॅ धान, मकई, गेहूँ,
जैबोॅ तोरे संगे-साथे हमहूँ कमाबै लेॅ।
ग्रामीण विकास परियोजना सेॅ ऋण लेके,
चलोॅ गाय, गोरू फेनू खुट्टा पर बुलाबै ले।ॅ
कथी लेॅ पंजाब जैभय धीया पूता संगे साथें,
चलोॅ -चलोॅ घरबा मेॅ लक्ष्मी बुलाबै लेॅ ।।

3
कैलकै पलायन बिहारी मजदूर देखोॅ,
खेतियो बिहार के पैमाल होलोॅ जाय छै।
डिबिया केॅ बारी-बारी खोजै मजदूर यहाँ,
दिनों-दिन समस्या विशाल होलोॅ जाय छै।
रुपया केॅ लोभ मेॅ बुतरूओ केॅ भेजै वहाँ,
बाल-मजदूरी केॅ सबाल होलो जाय छै।
भनई कैलाश हे बिहारी मजदूर! सुनोॅ,
अप्पन बिहार तेॅ कंगाल होलोॅ जाय छै।।