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मुकरी-4 / कैलाश झा ‘किंकर’
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चाहै छै ऊपर आबै लेॅ
जौहर अप्पन देखलाबै लेॅ
करतें धरती भंगुर-भंगुर
की सखि चूहा ?
नै सखि अंकुर।
दुखी लोग के भी बहलाबै
ग्यानोॅ के कुछ बात बताबै
घर-घर सबके जैसे बीबी
की सखि गीता ?
नै सखि टी.वी.।
जेकरा पकडै कभी नै छोडै
निशि-दिन डरबै मन केॅ तोडै
दुब्बर पातर बनबै देह
की सखि कैंसर ?
नै संदेह।
जेकरा बिन होय छै अपमान
जीवन लागै बोझ समान
अधिकारो लागै छै भिक्षा
की सखि दौलत ?
नै सखि शिक्षा।