भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक वृक्ष भी बचा रहे / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 9 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंतिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ

एक वृक्ष जाएगा

अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर

साथ जाएगा एक वृक्ष

अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझ से पहले


'कितनी लकड़ी लगेगी'

शमशान की टालवाला पूछेगा

ग़रीब से ग़रीब भी सात मन तो लेता ही है


लिखता हूँ अंतिम इच्छाओं में

कि बिजली के दाहघर में हो मेरा संस्कार

ताकि मेरे बाद

एक बेटे और एक बेटी के साथ

एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में